संदेश

= श्री गणपतिस्तोत्रम् =

चित्र
== श्री गणपतिस्तोत्रम् == === ।। श्री गणेशायनमः ।। === ==== ।।नारद उवाच ।। ==== प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् ।। भक्तावासं स्मरेनित्यमायु:सर्वकामार्थसिध्दये ।।1।। प्रथमं वक्रतुंड च एकदन्तं द्वितीयकम्। तृतीयं कृष्णपिंगाक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम्।। 2।। लंबोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च। सप्तमं विघ्न राजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टमम्।। 3।। नवमं भालचंद्रं च दशमं तु विनायकम्। एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्।। 4।। द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः। न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिध्दिकरं प्रभो।। 5।। विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्। पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम्।। 6।। जपेत् गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत्। संवत्सरेण सिध्दिं च लभते नात्र संशयः।। 7।। अष्टभ्यो ब्राम्हाणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत्। तस्य विद्या भवेत्सर्वा गणेशस्य प्रसादतः।। 8।। इति श्री नारदपुराणे संकटनाशनं नाम महागणपतिस्तोत्रं संपूर्णम्।।

ऋणहर्ता गणपति स्तोत्र दिलाये कर्ज से छुटकारा

चित्र
अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए हर व्यक्ति को जीवन में कभी न कभी कर्ज लेना ही पड़ता  है। कई बार व्यक्ति कर्ज को जल्दी चुकाना चाहता है, लेकिन कर्ज का अंत ही नहीं होता है। ऐसे समय में ऋणमोचन हेतु 'ऋणहर्ता गणपति स्तोत्र' का निरंतर पाठ करने से कर्ज शीघ्र ही  चुकता होता है, साथ ही धन पाने के अन्य कई रास्ते भी निकल आते हैं। आइए पढ़ें...    ध्यान   ॐ सिन्दूर-वर्णं द्वि-भुजं गणेशं लम्बोदरं पद्म-दले निविष्टम्। ब्रह्मादि-देवैः परि-सेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणामि देवम्।। सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।1   त्रिपुरस्य वधात् पूर्वं शम्भुना सम्यगर्चित:। सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।2   हिरण्य-कश्यप्वादीनां वधार्थे विष्णुनार्चित:। सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।3   महिषस्य वधे देव्या गण-नाथ: प्रपुजित:। सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।4   तारकस्य वधात् पूर्वं कुमारेण प्रपूजित:। सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।5   भास्करेण गणेशो हि पूजितश्छवि-सिद्धए। सदैव पार्वती-पुत्र: ऋण-नाशं करोतु मे।।6   शशिना कान्ति-...

आदित्य ह्रदय स्तोत्र हर क्षेत्र में चमत्कारी सफलता देता है। पढ़ें आदित्य ह्रदय स्रोत निरंतर :

चित्र
आदित्य ह्रदय स्रोत : आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से नौकरी में पदोन्नति, धन प्राप्ति, प्रसन्नता, आत्मविश्वास के साथ-साथ समस्त कार्यों में सफलता मिलती है। हर मनोकामना सिद्ध होती है। सरल शब्दों में कहें तो आदित्य ह्रदय स्तोत्र हर क्षेत्र में चमत्कारी सफलता देता है। पढ़ें आदित्य ह्रदय स्रोत निरंतर : ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्‌ । रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम्‌ ॥1॥ दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्‌ । उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा ॥2॥ राम राम महाबाहो श्रृणु गुह्मं सनातनम्‌ ।  येन सर्वानरीन्‌ वत्स समरे विजयिष्यसे ॥3ll आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्‌ ।  जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम्‌ ॥4॥ सर्वमंगलमागल्यं सर्वपापप्रणाशनम्‌ । चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम्‌ ॥5॥  रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्‌ । पुजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम्‌ ॥6॥ सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावन: । एष देवासुरगणांल्लोकान्‌ पाति गभस्तिभि: ॥7॥ एष ब्रह्मा च विष्णुश्च शिव: स्कन्द: प्रजापति: । महेन्द्रो धनद: कालो यम: सोमो ह्यापां पतिः ॥...

आज देवउठनी एकादशी पर सुनते हैं यह व्रत कथा, होगा आपको विशेष लाभ l

चित्र
आज देवउठनी एकादशी पर सुनते हैं यह व्रत कथा, होगा आपको विशेष लाभ l हिन्दी पंचांग के अुसार, कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इस वर्ष देवउठनी एकादशी आज 25 नवंबर को है। इसी दिन तुलसी के संग शालीग्राम का विवाह भी होता है। देवउठनी एकादशी को भगवान विष्णु की विधि विधान से पूजा की जाती है। पूजा के समय देवउठनी एकादशी व्रत की कथा सुनी जाती है, इसके पुण्य से व्यक्ति को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। ऐसी धार्मिक मान्यता है। इस देवउठनी एकादशी पर पढ़ें य​​ह व्रत कथा। एक समय एक राजा था। उसके राज्य में सभी एकादशी का व्रत करते थे। एकादशी के दिन पूरे राज्य में किसी को अन्न नहीं दिया जाता ​था। एक दिन एक व्यक्ति नौकरी मांगने के उद्देश्य से राजा के दरबार में आया। उसकी बातें सुनने के बाद राजा ने कहा कि नौकरी तो मिल जाएगी, लेकिन एकादशी के दिन अन्न नहीं दिया जाएगा। नौकरह मिलने की खुशी में उस व्यक्ति ने राजा की बात मान ली। एकादशी का व्रत आया। सभी व्रत थे। उसने भी फलाहार किया लेकिन भूख नहीं मिटी। वह राजा के पास अन्न मांगने गया। उसने राजा से कहा कि फलाहार से उनकी भू...

दोस्त होने के बावजूद चंदबरदाई ने क्यों किया था पृथ्वीराज चौहान का वध?

चित्र
दोस्त होने के बावजूद चंदबरदाई ने क्यों किया था पृथ्वीराज चौहान का वध? पृथ्वीराज एक महान योद्धा होने के साथ-साथ एक प्रेमी भी थे। संयोगिता और पृथ्वीराज की प्रेम कहानी इतिहास के पन्नों में बहुत खूबसूरती के साथ दर्ज है। लेकिन अपने बचपन के मित्र और राजकवि चंदबरदाई के साथ उनकी दोस्ती के किस्सों को बहुत ही कम लोग जानते होंगे।बात उन दिनों की है जब अपने नाना की गद्दी संभालने के लिए पृथ्वीराज ने दिल्ली का शासन संभाला था। दरअसल दिल्ली के पूर्व शासक अनंगपाल का कोई पुत्र नहीं था इसलिए उन्होंने अपने दामाद और अजमेर के महाराज सोमेश्वर चौहान से यह अनुरोध किया कि वह अपने पुत्र पृथ्वीराज को दिल्ली की सत्ता संभालने दें।सोमेश्वर चौहान ने इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया और पृथ्वीराज चौहान दिल्ली के शासक बन गए। एक तरफ जहां पृथ्वीराज दिल्ली की सत्ता संभाल रहे थे वहीं दूसरी ओर कन्नौज के शासक जयचंद ने अपनी पुत्री संयोगिता के स्वयंवर की घोषणा कर दी। जयचंद, पृथ्वीराज के गौरव और उनकी आन से ईर्ष्या रखता था इसलिए उसने इस स्वयंवर में पृथ्वीराज को निमंत्रण नहीं भेजा। पृथ्वीराज चौहान का चित्र देखकर...

जब संत ने महमूद गजनवी से कहा, जरा अदब का लिहाज रख ये हराम है l

चित्र
जब संत ने महमूद गजनवी से कहा, जरा अदब का लिहाज रख ये हराम है l संत अबुल हसन खिरकानी की परीक्षा लेने के लिए महमूद गजनवी अपने एक गुलाम को शाही लिबास पहनाकर और खुद दासी का रूप धारण कर उनके पास गया। संत ने केवल दासीरूप में आए महमूद की ओर देखा। इस पर बादशाह बना गुलाम बोला, ‘आपने बादशाह का सम्मान क्यों नहीं किया?’ हसन बोले, ‘सब रचा-रचाया जाल है।’महमूद जान गया कि यह पहुंचा हुआ महात्मा है। उसने लिबास उतारकर माफी मांगी और कुछ नसीहतें देने को कहा। अबुल हसन ने दूसरों को बाहर करके कहा, ‘ऐ! महमूद, जरा अदब का लिहाज रख। जो चीजें हराम हैं, उनसे दूर रह। खुदा की बनाई दुनिया से प्यार कर और अपने जीवन में उदारता बरत।’ तब महमूद ने उन्हें अशर्फियों की थैली भेंट की। इस पर संत ने एक सूखी जौ की टिकिया उसे खाने को दी।महमूद उसे चबाता रहा, किंतु वह गले से न उतरी। तब वह बोला, ‘यह निवाला मेरे गले में अटक रहा है।’ इस पर हसन बोले, ‘तब क्या तू भी यह चाहता है कि यह थैली मेरे हलक में अटके?’ महमूद शर्मिंदा हो गया और जाते-जाते बोला, ‘आपकी झोपड़ी बड़ी उम्दा है।’ हसन बोले, ‘महमूद, खुदा ने तुझे इतनी बड़ी सल्तनत दी...

शिव तांडव स्तोत्रं

चित्र
जटाटवीगलज्जल प्रवाहपावितस्थले गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजंगतुंगमालिकाम्‌। डमड्डमड्डमड्डमनिनादवड्डमर्वयं चकार चंडतांडवं तनोतु नः शिवः शिवम ॥1॥ जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिंपनिर्झरी । विलोलवी चिवल्लरी विराजमानमूर्धनि । धगद्धगद्ध गज्ज्वलल्ललाट पट्टपावके किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥2॥ धरा धरेंद्र नंदिनी विलास बंधुवंधुर- स्फुरदृगंत संतति प्रमोद मानमानसे । कृपाकटा क्षधारणी निरुद्धदुर्धरापदि कवचिद्विगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥3॥ जटा भुजं गपिंगल स्फुरत्फणामणिप्रभा- कदंबकुंकुम द्रवप्रलिप्त दिग्वधूमुखे । मदांध सिंधु रस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनो विनोदद्भुतं बिंभर्तु भूतभर्तरि ॥4॥ सहस्र लोचन प्रभृत्य शेषलेखशेखर- प्रसून धूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः । भुजंगराज मालया निबद्धजाटजूटकः श्रिये चिराय जायतां चकोर बंधुशेखरः ॥5॥ ललाट चत्वरज्वलद्धनंजयस्फुरिगभा- निपीतपंचसायकं निमन्निलिंपनायम्‌ । सुधा मयुख लेखया विराजमानशेखरं महा कपालि संपदे शिरोजयालमस्तू नः ॥6॥ कराल भाल पट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल- द्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके । धराधरेंद्र नंदिनी कुचाग्रचित्रपत्रक- प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने मत...