दोस्त होने के बावजूद चंदबरदाई ने क्यों किया था पृथ्वीराज चौहान का वध?
दोस्त होने के बावजूद चंदबरदाई ने क्यों किया था पृथ्वीराज चौहान का वध?
पृथ्वीराज एक महान योद्धा होने के साथ-साथ एक प्रेमी भी थे। संयोगिता और पृथ्वीराज की प्रेम कहानी इतिहास के पन्नों में बहुत खूबसूरती के साथ दर्ज है। लेकिन अपने बचपन के मित्र और राजकवि चंदबरदाई के साथ उनकी दोस्ती के किस्सों को बहुत ही कम लोग जानते होंगे।बात उन दिनों की है जब अपने नाना की गद्दी संभालने के लिए पृथ्वीराज ने दिल्ली का शासन संभाला था। दरअसल दिल्ली के पूर्व शासक अनंगपाल का कोई पुत्र नहीं था इसलिए उन्होंने अपने दामाद और अजमेर के महाराज सोमेश्वर चौहान से यह अनुरोध किया कि वह अपने पुत्र पृथ्वीराज को दिल्ली की सत्ता संभालने दें।सोमेश्वर चौहान ने इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया और पृथ्वीराज चौहान दिल्ली के शासक बन गए। एक तरफ जहां पृथ्वीराज दिल्ली की सत्ता संभाल रहे थे वहीं दूसरी ओर कन्नौज के शासक जयचंद ने अपनी पुत्री संयोगिता के स्वयंवर की घोषणा कर दी।
जयचंद, पृथ्वीराज के गौरव और उनकी आन से ईर्ष्या रखता था इसलिए उसने इस स्वयंवर में पृथ्वीराज को निमंत्रण नहीं भेजा। पृथ्वीराज चौहान का चित्र देखकर सभी स्त्रियां उनके आकर्षण की वशीभूत हो गईं। जब संयोगिता ने पृथ्वीराज का यह चित्र देखा तब उसने मन ही मन यह वचन ले लिया कि वह पृथ्वीराज को ही अपना वर चुनेंगी।वह चित्रकार जब दिल्ली गया तब वह संयोगिता का चित्र भी अपने साथ ले गया था। संयोगिता की खूबसूरती ने पृथ्वीराज चौहान को भी मोहित कर दिया। दोनों ने ही एक-दूसरे से विवाह करने की ठान ली। पृथ्वीराज को भले ही निमंत्रण ना भेजा गया हो लेकिन उन्होंने उसमें शामिल होने का निश्चय कर लिया था।पृथ्वीराज का अपमान करने के उद्देश्य से जयचंद ने उन्हें स्वयंवर में तो आमंत्रित नहीं किया, लेकिन मुख्य द्वार पर उनकी मूर्ति को ऐसे लगवा दिया जैसे कोई द्वारपाल खड़ा हो।स्वयंवर के दिन जब महल में देश के कोने-कोने से आए राजकुमार उपस्थित थे तब संयोगिता को कहीं भी पृथ्वीराज नजर नहीं आए। इसलिए वह द्वारपाल की भांति खड़ी पृथ्वीराज की मूर्ति को ही वरमाला पहनाने आगे बढ़ी। जैसे ही संयोगिता ने वरमाला मूर्ति को डालनी चाहे वैसे ही यकायक मूर्ति के स्थान पर पृथ्वीराज चौहान आ खड़े हुए और माला पृथ्वीराज के गले में चली गई।अपनी पुत्री की इस हरकत से क्षुब्ध जयचंद, संयोगिता को मारने के लिए आगे बढ़ा लेकिन उनका प्रेम उनके लिए सबसे बड़ी गलती बन गया।इधर संयोगिता और पृथ्वीराज खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे थे, वहीं जयचंद मोहम्मद गोरी के साथ मिलकर पृथ्वीराज को मारने की योजना बनाने लगा।पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को 16 बार धूल चटाई थी लेकिन हर बार उसे जीवित छोड़ दिया। गोरी ने अपनी हार का और जयचंद ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए एक-दूसरे से हाथ मिला लिया। जयचंद ने अपना सैनिक बल पृथ्वीराज चौहान को सौंप दिया, जिसके फलस्वरूप युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को बंधक बना लिया गया।बंधक बनाते ही मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान की आंखों को गर्म सलाखों से जला दिया और कई अमानवीय यातनाएं भी दी गईं। अंतत: मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को मारने का फैसला कर लिया।इससे पहले कि मोहम्मद गोरी पृथ्वीराज को मार पाता, पृथ्वीराज के करीबी दोस्त और राजकवि चंद्रवरदाई ने गोरी को पृथ्वीराज की एक खूबी बताई।दरअसल पृथ्वीराज चौहान, शब्दभेदी बाण चलाने के उस्ताद थे। वह आवाज सुनकर तीर चला सकते थे। गोरी ने पृथ्वीराज को अपनी यह कला दिखाने का आदेश दिया।प्रदर्शन आरंभ करने का आदेश देते ही पृथ्वीराज ने समझ लिया कि गोरी कितनी दूरी और किस दिशा में बैठा है। उनकी सहायता करने के लिए चंद्रवरदाई ने भी दोहों की सहायता से पृथ्वीराज को गोरी की बैठकी समझाई।पृथ्वीराज ने बाण चलाया जिससे मोहम्मद गोरी धाराशायी हो गया। कहते हैं दुश्मन के हाथ से मरने से अच्छा है किसी अपने के हाथ से मरा जाए। बस यही सोचकर चंद्रवरदाई और पृथ्वीराज ने एक-दूसरे का वध कर अपनी दोस्ती का बेहतरीन नमूना पेश किया। जब संयोगिता को इस बात की खबर मिली तब वह भी एक वीरांगना की तरह सती हो गई।
  
  
  
  
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