गुरु कृपा-सिद्ध बाबा गुरु गोरख नाथ : आज हम सभी आभारी है बाबा गोरख नाथ जी के जो आज उनके द्वारा दिए गए उपदेशों से और अपने दिए गए शाबर मन्त्रों से मानव जीवन कुछ आसान और तंत्र से भक्तों का देवताओ से जुड़ने का आसान रास्ता या कहें तरीका हिन्दू सम्प्रदाय को सौप दिया l गुरु प्रथा गुरु आचरण गुरु संस्कार गुरु महत्व गुरु भक्ति विधान और गुरु के प्रति अत्याधिक प्रेम उनके स्वभाव और संकल्प शक्ति विचारो के माधुर्य रस से झलकता हुआ आज भी सच्चे भक्त गुरु मे उसी तरह विद्यमान है जो उनके समय मे और उनके गुरु दादा गुरु मछद्र नाथ समाहित था बस कमी है तो इस बात की कि आज कल गुरु बनाने से पहले ज़न मानस गुरु के विशेष गुण की कल्पनाओ से अपने मन में एक विचार बना लेते है कि गुरु ऐसा हो गुरु वैसा हो उसकी शक्तियां तंत्र कला मंत्र क्रियाएं प्रयोग भविष्यवक्ता गुण आदि के बारे मे सोच कर गुरु की खोज करते हैं किन्तु अपने विचारो मे ये बातें नहीं ला पाते कि गुरु एक संस्कार है और सामर्थ्य शक्ति जो हमारी भक्ति को बल देती है और भक्ति ही हमारी सकारात्मक ऊर्जा बनकर हमे हर तरीके के नकारत्मक विचारो बूरी आत्माओं गलत क्रियाओं के प्रयोग से बचाती है और ऐसे कर्मों को करने गुरु हमेशा आपको रोकते है l जब कि यहां आज कलयुग में शुरू शुरू में अपना ही पूरा परिचय देना पड़ जाता है और फिर जहां बात आती है शांति और संतोष की तो वहां पर नई पीढ़ी भौतिक चीज़ों की उपलब्धी चाहती है तंत्र मंत्र यंत्र यज्ञ आदि साधनाओं से सुख साधन पाकर शांति चाहते है जब कि बाबा गोरख नाथ और शंकर भगवान का एक ही विचार की शून्य अवस्था ही सुख का आधार l अब बात आती है यहा आधार ही जब शून्य है सुख साधन का फिर यहां लोग लगे है बडे बड़े साधन एकत्रित करके सत्संग मे लिन है नाचने गाने मे सब गाने बजाने सुनने कहने और नाचने मे व्यस्त कि अचानक बत्ती गुल हुई और सब साधन रह गए अधर मे क्योंकि बत्ती नहीं तो विचार कैसे फैलाए अब l अब आप ये सोचिए यहा सारा खेल था साधनो का l इसके विपरित इतने साधन ना एकत्र करके सिर्फ ज्ञान ध्यान पर बल दिया जाता और इस ज़न मानस को एकत्रित करके इनका बौद्धिक विकास करते हुए साधनो से दूरी की दीक्षा दी जाती और संदेश उसमे ये होता कि अत्याधिक की चाह अहंकार का रास्ता है और एकत्रित या कहिये संग्रहित धन ये भाव बार बार लाएगा की कहीं हानि ना हों जाए धन चोरी ना हो जाए कोई हड़प ना ले इस धन की वज़ह से कोई हमारी हत्या ना कर दे l कहने का मतलब है कि ये सभी भौतिकता वादी साधन आपको कमजोर बनाएंगे l इनका संचय जितना हो सके कम कीजिए और ज्ञान संग्रह जितना हो अधिक से अधिक l ताकि मन मे कोई भार ना रहे l ये सभी ह्रदय की दुर्बलता के विषय बिंदु है linse जितनी आपकी दूरी होगी आपकी बौद्धिक क्षमता उतनी ही प्रबल और ज्ञान की ओर विकसित होगी l सूक्ष्म साधन ही सुख दे सकते है ज्ञान का l बाकि अगर आप भौतिकता वादी शैली इस सनातन धर्म को मानकर सुख चाहते हो तो कहीं सुख नहीं l बौद्धिक विकास चलता रहे और प्रभुत्व में तन मन लिन रहे बस ऐसी भक्ति ही हमे शून्यता की ओर ले जाएगी l जहा परमार्थ शक्ति शिव शंभु ज़ति गुरु गौरक्ष का मोक्ष रूपी परम धाम है l जय बाबा की l ॐ शिव गौरक्ष आदेश 🚩


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