पितृ दोष अगर ऐसा करने से कभी रह जाए तो कहना बस एक बार पढ़ लो समाधान खुद हो जाएगा इसलिए

पितृ शांति के लिए आज हममे से बहुत से लोग रीति रिवाज वैदिक कर्म पूजा पाठ विधान और सत्कर्मों को करने में व्यस्त है लेकिन फिर भी कहीं ना कहीं चूक हो ही रहीं है क्योंकि आपको इस सबसे भी पितृ शांति का अभिप्राय सिद्ध नहीं हो रहा और आप के मन में ये कुंठा विद्यमान है कि नहीं अभी भी हमारे पितृ गणों को अन्न जल शांति नहीं पहुंची l कभी आपने सोंचा ऐसा क्यों?

मैं आपको एक ऐसी बात कहने जा रहा हूँ जो वैदिक कर्मों से नहीं गायत्री मंत्र यज्ञ आदि से परे सिर्फ वैचारिक अनुभूति है और वो यह है कि जैसे आप अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित रहते है ऐसे ही सभी के पितृगण अपने कुल का उधार और समाजिक मान प्रतिष्ठा चाहते है ताकि उनका नाम रोशन हो वो कभी नहीं चाहते कि उनके कुल में झूट फरेब अपराध नशा चोरी नफरत हीन भावना अहंकार और कुल को नष्ट करने वाले कर्म हो इसलिए l उनकी सोच आपके परिवारो से जुड़ी है और वो आपको और एक दूसरे को ऐसा करने से रोकते है क्योंकि उन्हें अपने कुल से ये चलन खत्म कराना है इसलिए परेशान करते है और आपका ध्यान इस और आए इसलिए आपको महसूस कराने की कोशिश करते है क्योंकि उन्हें पसंद नहीं कि कुल में वर्ण शंकर फैले और परिवार दूषित हो जैसे लड़के अपनी मर्जी से शादी कर रहे हैं लड़की अपनी मर्जी से माता की कोई सुनता नहीं पिता शराब के नशे में चूर पिता की सामाजिक प्रतिष्ठा खत्म होती जा रही है है दरिद्रता बढ़ती जा रहीं है सब बेरोजगारी की दलदल में फंसते जा रहे है सभी का मान सम्मान घटता जा रहा है कर्जा लेले कर खाना पढ़ रहा है हर इंसान सलाह देकर जाता है लेकिन साथ कोई नहीं देता l कलह हर वक्त रहती है दो समय के भोजन के वक्त क्लेश ज़मीन जायदाद पैतृक संपत्ति गिरवी या बिकती जा रहीं है l
ये सभी पितृ दोष के कारण है और हमारे पितृगण हमे इससे बचाना चाहते है लेकिन हम अहंकार मे लिप्त हैऔर किसी ब्राह्मण कुल गुरु संत बाबा के विचारो का पालन नहीं करते l रीति छोड़ कुरीतियों का पालन करते है सात्विक अहार छोड़ मांसाहारी भोजन के लिए प्रयत्नशील रहते है और दुर्व्यवहार दुर विचार अपशब्दों और बच्चों बूढ़ों महिलाओ के मान सम्मान को बचाने में या उनका आदर भाव नहीं रखते अपने अहंकार और खुद को ज्ञानी समझ अज्ञान से से लिप्त सत्कर्मों की अवहेलना में लगे रहते है जिससे ऐसा होता है और फिर अमावस्या मनाओ ब्राह्मण भोज कराओ गंगा नहाओ गायत्री कराओ कोई फल नहीं मिलता अशांति बनी ही रहती है ऐसे में सबसे पहला उपाय है अहंकार का त्याग दूसरा आदर भाव तीसरा सत्कर्म चौथा संस्कारों की और प्रेरित पांचवां रीति रिवाजों का पालन छटा महिलाओं का आदर सातवां प्रेम भावना कायम रखना आठवां पैतृक संपत्ति का आदर भाव टुकड़े होने से बचाना नौवां उपाय समाज मैं ब्राह्मण संत-महात्माओं बाबाओं का समय-समय पर भोज और सेवाभाव और दसवां उपाय सबसे कठिन और सबसे मुश्किल लेकिन सत्य पर आधरित एक परिवार व्यवस्थित रहना /जॉइंट् फॅमिली जिसे कहते है सभी भाई बहन एक विचार व्यवहारिक होकर साथ रहे l सभी की परेशानियों को ध्यान में रखते हुए एक दूसरे को साथ लेकर चले जब ऐसा होने में कामयाब हो जाओ तब बताना क्या है अब पितृ दोष l
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