शनिदेव और उनकी माता छाया,जितना रहस्यमयी नाम है शनि देव की माता का उतनी ही रहस्यमयी है उनकी जन्मकथा l
शनिदेव की माता छाया जितना रहस्यमयी नाम है, उतनी ही रहस्यमयी उनकी जन्मकथा है।
शनिदेव की पिता सूर्य और माता छाया हैं। लेकिन उनकी माता 'छाया' का जितना रहस्यमयी नाम है, उतनी ही रहस्यमयी उनकी जन्मकथा है। दरअसल भगवान सूर्य का विवाह विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से हुआ। विवाह के बाद संज्ञा ने वैवस्वत और यम नामक दो पुत्रों और यमुना नामक एक पुत्री को जन्म दिया।
संज्ञा बड़े कोमल स्वभाव की थी, जबकि सूर्य देव प्रचंड तेजवान थे। संज्ञा सूर्य देव के तेज़ को बड़े कष्ट से सहन कर पाती थी। उसके लिए वह तेज़ असहनीय था। तब उनके तेज़ से बचने के लिए वह अपनी छाया ( परछाईं को स्त्री रूप में परिवर्तित कर) को सूर्य की सेवा में छोड़कर स्वयं पिता विश्वकर्मा के पास चली गईं थीं।
जब पिता के यहां संज्ञा को रहते हुए संज्ञा को काफी दिन हो गए तब विश्वकर्मा ने उन्हें पति के घर लौटने को कहा। वह सूर्य देव के तेज से डरी हुई थीं और उनका सामना नहीं करना चाहती थी। इसलिए उत्तरकुरु नामक स्थान पर घोड़ी का रूप रख तपस्या करने लगीं।
ऐसा है शनिदेव का रूप
मत्स्य पुराण के अनुसार शनि देव गिद्ध पर सवार हैं, हाथ में धनुष बाण है एक हाथ से वर मुद्रा भी है, शनि देव का विकराल रूप भयावना भी है। शनि देव के अनेक मन्दिर हैं। भारत में भी शनि देव के अनेक मन्दिर हैं, जैसेः- शिंगणापुर, वृंदावन के कोकिला वन, ग्वालियर के शनिश्चराजी, दिल्ली तथा अनेक शहरों मे महाराज शनि के मन्दिर हैं।
  
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