एक दिन जब गोरख नाथ जी कबीर साहब के साथ रैदास जी से मुलाकात करने पहुँचे और फिर वहां क्या वृतांत

गोरखनाथ जी को एक दिवस इच्छा हो गई कि कबीर साहब से मिला जाये !कबीर साहब उस समय मे एक ऐसे संत हुये की उनके पास हिन्दू मुसलमानकोई भी हो  सब समान भाव उनमे रखते थे ! और ऐसा ही उस समय केसंत समाज मे भी उनसे हर पंथ , हर सम्प्रदाय का महात्मा उनसे भेंट मुलाकात करके प्रसन्न होता था ! इनके बारे विस्तृत चर्चा फिर कभी करेंगे !अभी हम इस कहानी को आगे बढायेंगे ! अपने प्रोग्राम अनुसार गोरखनाथ कबीरसाहब के पास पहुंच गये।

कबीर ने उनका बडा आदर सत्कार किया और दोनो महात्माओं मे सत्सन्ग चर्चाचलती रही ! इतनी देर मे कमाली जो कि कबीर की बेटी थी वो आ गई ! और कबीर साहब से बोली – मैं तैयार हूं ! अब चले ! कबीर साहब ने कमाली का परिचय गोरख से करवाया और कमाली उनको प्रणाम करके बैठ गई ! गोरखनाथ जी ने पूछा कि आपका कहां जाने का प्रोग्राम था ? तब कबीर साहब ने बताया कि हम संत रैदास जी के पास मिलने जाने वाले थे ! और कबीर साहब यह तो कह नही पाये कि अब आप आगये तो नही जायेंगे , क्योंकी उनका वहां जाना जरुरी था ! अब कबीर साहब बोले – गोरखनाथ जी आप भी हमारे साथ चलें तो बडा अच्छा हो ! रैदास जी बहुत पहुंचे हुये महात्मा हैं !अब गोरख ठहरे कुलीन नाथपंथ के महान सिद्ध योगी ! वो भला मिलने जाये और वो भी रैदास से ? ये भी कोई बात हुई ? अरे गोरख के तो उनको दर्शन भी नही हों !और ये कबीर साहब का दिमाग कुछ चल गया जो हमसे कह रहे हैं कि रैदास सेमिलने चलो ! उनकी क्या जात है ? हम अच्छी तरह से जानते हैं ! पर कबीर साहब ने जब जोर देकर कहा तो गोरख मना नही कर सके ! और तीनों पहुंच गये रैदास के घर पर ! वहां पहुंचते ही रैदास तो बिल्कुल भाव विह्वल हो कर पगला से गये ! साक्षात कबीर, जिसको वो परमात्मा ही मानते थे ! वो उनके घर आया है ? और साथ मे गोरखनाथ जी , ये वो गोरख जिनका आने का तो सपने मे भी रैदास नही सोच सकते थे। आज साक्षात उनके सामने और उनके घर पर आ गये हैं ! क्योंकी कई बार रैदास ने कबीर को कहा भी था कि एक बार मुझे गोरखनाथ जी के दर्शन करवा दो !और आज तो उनकी समस्त इच्छाए पूरी हो रही थी !

जब ये तीनों लोग वहां पहुंचे थे तब रैदास जी अपने नित्य कर्म अनुसार जुते सी रहे थे !और इनके पहुंचते ही उसी अवस्था मे उठ्कर अन्दर गये ! वापसी मे उनके हाथ मे दो गिलास पानी या शर्बत के थे ! उन्होने उसी अवस्था मे एक गिलास कबीर की तरफ बढाया ! कबीर ने वह गिलास तुरन्त गटागट पी लिया ! और दुसरे गिलास को उन्होने गोरखनाथ जी की तरफ बढाया ! गोरखनाथ बोले – नही नही , मुझे प्यास नही है ! मैं अभी २ रास्ते मे पी कर ही आया हूं! जैसे हम लोग किसी को चाय के लिये मना करते हैं उसी अन्दाज मे उन्होंने पानी पीने से मना ��र दिया ! रैदास जी ने बहुत आग्रह किया ! पर गोरख ने मना कर दिया और अब वही गिलास रैदास जी ने कमाली की तरफ बढा दिया ! कमाली ने भी पी कर खाली कर दिया ! असल मे गोरख बहुत बडे सिद्ध योगी थे और वह उस समय के प्रसिद्ध नाथपन्थ के महान योगी थे !

उनके मन मे यह बात आ गई कि यह सीधासाधा चर्मकार, और अभी चमडा सीये हुये हाथों से पानी ले आया ! मैं इसके इन हाथो से पानी कैसे पिऊं ? और वैसे भी नाथ पंथ मे उस समय यह अभिजात्यपन था ! यानी कि हम श्रेष्ठ है जाति के हैं ! खैर साहब अब थोडा बहुत जो भी सत्संग हुआ और फिर सब विदा होकर अपने २ ठिकाने पहुंच गये ! अब इस घटना के बहुत बाद की बात है !

एक रोज गोरख आकाश मार्ग से जा रहे थे ! नीचे से उन्हे एक महिला की आवाज आई-आदेश गुरुजी .. आदेश गुरुजी .. ( यह नाथ पंथ मे प्रणाम करने का शब्द है ) !गुरु गोरख नाथ चौंके ? यह कौन है जो मुझे इस तरह देख पा रहा है ! और वो भी एक औरत ? उन्हे बडा आश्चर्य हुवा ! गुरु गोरखनाथ जी इतने महान सिद्ध थे कि अपनी योगमाया और सिद्धि के बल पर  जहां भी हो अपनी मर्जी से आकाश मे विचरते थे और वो भी अद्रष्य होकर ! उनको इतनी सिद्धियां प्राप्त थी कि उनके लिये कुछ भी असम्भव नही था ! इस घटना के समय वो मुल्तान (अब पाकिस्तान मे ) के उपर से जा रहे थे !गोरखनाथ आकाष से  नीचे आये और उन्होने उस औरत से पूछा कि – तुमने मुझे देखा कैसे ! मुझे अदृश्य होने के बाद कोई भी नही देख सकता ! ये हुनर या सिद्धि तो नाथपन्थ मे भी किसी के पास नही है ! फिर तू कौन ? औरत बोली – गुरुजी मैं तो आपको जब भी आप इधर से गुजरते हैं ! तब हमेशा ही देखती हूं ! और हमेशा आपको प्रणाम करती हूं। पर आप बहुत तेजी से जा रहे होते हैं !आज आप कम ऊंचाई पर थे तो आपको मेरी प्रणाम सुनाई दे गई ! आप तो मेरे घर चलिये !और मेरा आतिथ्य गृहण किजिये !

अब तो गोरख और भी चक्कर खा गये कि अब ये कौन मुझसे बडा सिद्ध पैदा हो गया ?यहे सिद्धि तो मेरे पास भी नही है कि मैं किसी अदृश्य व्यक्ति को देख सकूं ! उन्होने सोच लिया कि ये महिला में भी कुछ सिद्धि जरुर रखती है ! और आप अपने से छोटे मे तो रूचि नहीं  लेते पर बडे को आप यूं ही इग्नोर भी नही करते ! गोरख ने पूछा – माते आपका परिचय दिजिये ! मैं अधीर हो रहा हूं ! वो औरत बोली – गुरुजी आप मुझे नही पहचाने ?
अरे मैं वही कमाली हूं! याद करिये ! आप हमारे घर आये थे ! कबीर साहब के यहां !तब गोरख को याद आया कि अरे हां – यह महिला सही कह रही है ! मैने इसे कबीर के घर देखा था । तब उन्होने पूछा – तुझको यहअदृश्य वस्तुयें कब से दिखाई देती हैं और ये सिद्धि तुमको किसने दी ?कमाली बोली – गुरुजी , मेरे को कोई सिद्धि विद्धि नही दी किसीने ! बस मुझे तो दिखाई देता है ! अब गोरख ने सोचा की शायद कबीर यहे सिद्धि जानते होंगे और उन्होने ही कमाली को  यह सिद्धि दी होगी !
अब उन्होने पूछा कि कब से यह वस्तुएं दिखाई दे रही हैं ?कमाली बोली – आपको याद होगा कि आप और कबीर साहब के साथ मैं भी रैदास जी के यहां गई थी और उन्होने एक पानी का गिलास आपको दिया था ! और आपने वोपानी पीने से इनकार कर दिया था ! और वो गिलास रैदास जी ने मुझे दे दिया था !बस तबसे ही मुझे सब अदृश्य चीजे दिखाई देती हैं ! भूत प्रेत, जलचर, नभचर सब कुछ दिखाई देते हैं ! मैं शादी के बाद यहां मुल्तान आ गई ! क्योकी मेरी शादी यहां मुलतान मे हुई है ! और आपको तो मैं अक्सर ही देखती हूं !जब भी आप इधर से आकाश मार्ग से गमन करते हैं ! अब गोरख नाथ के आश्चर्य का ठिकाना नही रहा ! उनको अब वो रहस्य समझ आया कि क्यो कबीर उनको रैदास के यहां ले गये थे और क्यो रैदास ने उनको इतना आग्रह किया था कि गिलास का सर्बत पी लो  !

अब यहां से विदा होकर गोरख तुरन्त कबीर के पास गये और उनसे आग्रह किया कि वो अब रैदास जी के यहां उनको अभी ले चले, मै उनसे पुनः मिलना चाहता हूं! और कबीर तुरन्त ही उनको लेकर रैदास के पास गये ! रैदास जी ने उनको बैठाया और सत्संग की बाते शुरु करदी !अब गोरख का मन सत्संग में क्या लगता ! उन्होने कबीर को इशारा किया कि और  कहा कि पानी के लिये बोलो ! और रैदास जी ने आज पानी का नही पूछा ! तब उनकी उत्सुकता भांप कर रैदास बोले – गोरखनाथ जी आप जिस पानी को पीने का सोच कर आय्रे हैं वो पानी तो मुल्तान गया ! हर चीज का एक वक्त , एक मुहुर्त होता है ! अब वो घडी , वो मुहुर्त नही आयेगा ! अब मैं चाह कर भी वो पानी आपको नही पिला सकता ! तभी से ये कहावत पड गई कि ……वो पानी मुलतान गया ! क्योकिं वो पानी पीकर कमाली मुल्तान चली गई !सही है हर काम का एक समय एक मुहुर्त होता है ! उसको हम चूक गये तो अवसर हमारे पास नही आता ! तो इतने सक्षम और सिद्ध संत थे रैदास जी भी कि महान योगी गोरखनाथ भी उनके पास कुछ लेने आये थे ! सही है भक्ति अपने रंगरूप  मे अलग ही होती है !सिद्धियां अपनी जगह, भक्ति मे तो सब कुछ समाहित हो जाता है ! और अन्त मे सिद्ध भी भक्त ही बन जाता है ! जैसा गोरखनाथ के बाद के वचनों से मालूम होता है ।

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