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गुरु गोरखनाथ और हनुमान जी का हुआ था जब युद्ध यहाँ उसके बाद फिर क्या हुआ और कौन सा स्थान बना

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उत्तराखंड में जिस स्थान पर वर्तमान में सिद्धबली मंदिर स्थापित है वहां गुरु गोरखनाथ और बजरंगबली का द्वंद्व युद्ध हुआ था। इसके बाद यहां बजरंग बली प्रकट हुए और गुरु गोरखनाथ को दर्शन देकर उनको दिए वचनानुसार यहां पर प्रहरी के रूप में सदा के लिए विराजमान हो गए। यह स्थान गुरु गोरखनाथ का सिद्धि प्राप्त स्थान होने के साथ इसे सिद्धबली बाबा के नाम से जाना जाने लगा। स्कंद पुराण के केदारखंड में इस बात का जिक्र है। सिद्धबाबा को साक्षात गोरखनाथ मना जाता है। इनको कलयुग में शिव का अवतार माना जाता है। दोनों में भयंकर युद्ध हुआ मान्यता है कि गुरु गोरखनाथ के गुरु मछेंद्रनाथ हनुमान जी की आज्ञानुसार त्रियाराज्य (वर्तमान में चीन के समीप) की रानी मैनाकनी के साथ गृहस्थ आश्रम का सुख भोग रहे थे। जब इस बारे में उनके शिष्य गुरु गोरखनाथ को पता चला तो वे दुखी हुए। उन्होंने प्रण किया कि वह गुरु को इससे मुक्त कराएंगे। जैसे ही वह त्रियाराज्य की ओर प्रस्थान कर रहे थे हनुमान जी ने वन मनुष्य का रूप लेकर उनका स्थान रोक लिया। दोनों में भयंकर युद्ध हुआ। लेकिन हनुमान जी गुरु गोरखनाथ को पराजित नहीं कर पाए। इससे हनु...

चातुर्मास में शयन के दौरान भगवान विष्णु इस दिन करवट लेते हैं इसलिए देवश्यानी और देव प्रबोधनी के समान ही परिवर्तिनी एकादशी का महत्व है।

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भाद्रमास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को परिवर्तिनी या पद्म एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस बार यह शुभ तिथि 29 अगस्त दिन शनिवार को है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, चातुर्मास में शयन के दौरान भगवान विष्णु इस दिन करवट लेते हैं। इसलिए धार्मिक दृष्टि से इस एकादशी का बहुत महत्‍व माना जाता है। शास्त्रों में बताया गया है कि देवश्यानी और देव प्रबोधनी के समान ही परिवर्तिनी एकादशी का महत्व है। इस दिन व्रत और पूजन करने पर सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है l परिवर्तिनी एकादशी पर इस बार शुभ संयोग बन रहे हैं, जिससे इस एकादशी का महत्व और भी बढ़ जाता है। परिवर्तिनी एकादशी के साथ इस बार भगवान विष्णु के पांचवे अवतार वामन का भी जन्मोत्सव मनाया जाएगा। इस दिन भगवान विष्णु के वामन स्वरूप की भी पूजा की जाती है। इसलिए इस बार एकादशी का काफी महत्व है। साथ ही इस दिन एकदाशी के साथ द्वादशी भी लग रही है। 29 अगस्त के दिन सुबह 08 बजकर 18 मिनट पर एकादशी तिथि खत्म हो जाएगी और फिर द्वादशी तिथि शुरू हो जाएगी। जिससे एकादशी और द्वादशी दोनों तिथि का संयोग बन रहा है। शास्त्रों के अनुसार, असु...

देवी अथर्वशीर्ष स्तोत्रम-

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देवी अथर्वशीर्ष स्तोत्रम- ।अथ श्री देव्यथर्वशीर्षम। ॐ सर्वे वै देवा देवीमुपतस्थुः कासि त्वं महादेवीति ।।1।। साब्रवीत्- अहं ब्रह्म्स्वरुपिणी । मत्तः प्रकृति पुरुशात्मकं जगत् । शून्यं चाशून्यं च ।।2।। अहमानन्दानानन्दौ । अहं विज्ञानाविज्ञाने । अहं ब्रह्माब्रह्मणी वेदितव्ये । अहं पञ्च्भूतान्यपञ्चभूतानि । अहमखिलं जगत् ।।3।। वेदोऽहमवेदोऽहम् । विद्याहमविद्याहम् । अजाहमनजाहम् । अधश्चोर्ध्वं च तिर्यक्चाहम् ।।4।। अहं रुद्रेभिर्वसुभिश्चरामि । अहमादित्यैरुत विश्वदेवैः । अहं मित्रावरुणावुभौ बिभर्मि । अहमिन्द्राग्नी अहमश्विनावुभौ ।। 5।। अहं सोमं तवष्टारं पूषणं भगं दधामि । अहं विष्णुमुरुक्रमं ब्रह्माणमुत प्रजापतिं दधामि ।।6।। अहं दधामि द्रविणं हविष्मते सुप्राव्ये यजमानाय सुन्वते । अहं राष्ट्री सङ्ग्मनी वसूनां चिकितुषी प्रथमा यज्ञियानाम् । अहं सुवे पितरमस्य मूर्धन्मम योनिरप्स्वन्तः समुद्रे । य एवं वेद । स दैवीं संपदमाप्नोति (sampadmaapnoti ) ।।7।। ते देवा अब्रुवन्- नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै सततं नमः । नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियताः प्रणताः स्म ताम् ।।8।। तामग्निवर्णां तपसा ज्वलन्तीं वैरोचनीं कर्मफ़लेषु...

दुश्मन होगा ढेर हनुमान जी की कृपा से

 हनुमान जी की सिद्धि साधना और दुश्मन से छुटकारा  ॐ हरि मर्कट मर्कटाये फ़ट स्वाहा 1008 जाप लगातार करे जब तक दुश्मन ढेर न हो जाए 

अर्गला स्तोत्र के पाठ से होंगी सभी मनोकामनाएं पूर्ण l

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अर्गला स्तोत्र के पाठ से होंगी सभी मनोकामनाएं पूर्ण l मानव जीवन के कर्मों को सिद्ध करने में देवी की उपासना का महत्व बहुत अधिक है। दुर्गा ही वो देवी है जिन्होंने समस्त जगत को उत्पन्न किया है। इसलिए ही मां का एक नाम जगतजननी भी है। जिस प्रकार मां अपनी संतान की सभी इच्छाएं पूर्ण करती है। उसी प्रकार जगतजननी मां भी अपने बच्चों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती है। देवी को प्रसन्न करने के लिए अनेकों पाठ किए जाते है। लेकिन क्या आप जानते है कि मां का अर्गला स्तोत्र विशेषतौर पर हमारी इच्छाओं की पूर्ति करने वाला है। समस्त मनोरथ पूर्ति में देवी की उपासना का महत्व बहुत अधिक है। दुर्गा ही वो देवी है जिन्होंने समस्त जगत को उत्पन्न किया है। इसलिए ही मां का एक नाम जगतजननी भी है। जिस प्रकार मां अपनी संतान की सभी इच्छाएं पूर्ण करती है। उसी प्रकार जगतजननी मां भी अपने बच्चों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती है।  देवी को प्रसन्न करने के लिए अनेकों पाठ किए जाते है। लेकिन क्या आप जानते है कि मां का अर्गला स्तोत्र विशेषतौर पर हमारी इच्छाओं की पूर्ति करने वाला है। अर्गला का अर्थ होता है- अग्रणी। दुनिया में कोई ऐसी स...

क्षमा प्रार्थना-अपराध सहस्त्राणि क्रियन्तेहर्निशं मया l

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॥ क्षमा - प्रार्थना ॥  अपराध सहस्त्राणि  क्रियन्तेहर्निशं मया दासोsयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरी ॥ आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्,  पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वरी ॥ मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्ति हीनं  सुरेश्वरि,  यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे ॥ अपराध शतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत,  यां गतिं समवाप्नोति न तां  ब्रह्मादयः सुराः ॥ सअपराधोsस्मि सरणं  प्राप्तस्त्वां जगदम्बिके , इदानीमनुकम्प्योsहं यथेच्छसि   तथा कुरु ॥          अज्ञाना द्वि स्मृतेर्भ्रान्त्या  यन्न्युनमधिकं कृतम्  तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरी ॥ कामेश्वरी जगन्मातः सच्चिदानन्द विग्रहे  गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्वरी ॥  गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम्   सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्वरी ॥ जय माता महा माई जय गुरु महाराज  जय बाबा की 

जानें कहां हुआ था जन्म I राधा जी के बारे में प्रचलित है कि वह बरसाना की थीं।

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जानें कहां हुआ था जन्म I राधा जी के बारे में प्रचलित है कि वह बरसाना की थीं। बरसाना की नहीं थीं राधा, जानें कहां हुआ था जन्म राधा जी बारे में प्रचलित है कि वह बरसाना की थीं।  लेकिन, हकीकत है कि उनका जन्‍म बरसाना से 50 किलोमीटर दूर हुआ था। यह गांव रावल के नाम प्रसिद्ध है। यहां पर राधा का जन्‍म स्‍थान है। कमल के फूल पर जन्‍मी थीं राधा - रावल गांव में राधा का मंदिर है। माना जाता है कि यहां पर राधाजी का जन्‍म स्‍थान है। - श्रीकृष्‍ण जन्‍मस्‍थान सेवा संस्‍थान के सचिव कपिल शर्मा के अनुसार, 5 हजार साल पहले रावल गांव को छूकर यमुना बहती थी। - राधा की मां कृति यमुना में स्‍नान करते हुए अराधना करती थी और पुत्री की लालसा रखती थी। - पूजा करते समय एक दिन यमुना से कमल का फूल प्रकट हुआ। कमल के फूल से सोने की चमक सी रोशनी निकल रही थी। इसमें छोटी बच्‍ची का नेत्र बंद था। अब वह स्‍थान इस मंदिर का गर्भगृह है। - इसके 11 महीने बाद 3 किलोमीटर दूर मथुरा में कंस के कारागार में भगवान कृष्‍ण का जन्‍म हुआ था। - वह रात में गोकुल में नंदबाबा के घर पर पहुंचाए गए। तब नंद बाबा ने सभी जगह संदेश भेजा और क...

राधा अष्टमी के व्रत के साथ ही जन्माष्टमी का व्रत माना जाता है पूर्ण, जानिये व्रत विधि और कथा

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कहते हैं कि जब उनके पिता वृषभानु जी यज्ञ स्थल की सफाई कर रहे थे। उस समय उन्हें देवी राधा वहां मिलीं और वृषभानु जी ने उन्हें अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया। राधा रानी को श्रीकृष्ण की बाल सहचरी, जगजननी भगवती शक्ति माना जाता है। राधा अष्टमी का त्योहार 26 अगस्त, बुधवार को मनाया जाएगा। मान्यता है कि इसी दिन श्री राधा रानी बरसाने में प्रकट हुई थीं। कहते हैं कि जब उनके पिता वृषभानु जी यज्ञ स्थल की सफाई कर रहे थे। उस समय उन्हें देवी राधा वहां मिलीं और वृषभानु जी ने उन्हें अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया। राधा रानी की माता का नाम कीर्ति है। हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को यानी जन्माष्टमी के पन्द्रह दिन बाद राधा अष्टमी मनाई जाती है। माना जाता है कि जो श्रद्धालु भगवान कृष्ण के लिए जन्माष्टमी का व्रत करते हैं। उन्हें श्री राधा रानी के लिए राधा अष्टमी का व्रत भी जरूर करना चाहिए अन्यथा जन्माष्टमी के व्रत को पूर्ण नहीं होता है।

अपनी तीसरी पत्नी पिंगला पर मोहित राजा भर्तृहरि के बैरागी बनने की कथा l साथ ही कई रहस्य बयां करती है राजा भर्तृहरि की गुफा l

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प्राचीन उज्जैन में बड़े प्रतापी राजा हुए। राजा भर्तृहरि अपनी तीसरी पत्नी पिंगला पर मोहित थे और वे उस पर अत्यंत विश्वास करते थे। राजा पत्नी मोह में अपने कर्तव्यों को भी भूल गए थे। उस समय उज्जैन में एक तपस्वी गुरु गोरखनाथ का आगमन हुआ। गोरखनाथ राजा के दरबार में पहुंचे। भर्तृहरि ने गोरखनाथ का उचित आदर-सत्कार किया। इससे तपस्वी गुरु अति प्रसन्न हुए। प्रसन्न होकर गोरखनाथ ने राजा एक फल दिया और कहा कि यह खाने से वह सदैव जवान बने रहेंगे, कभी बुढ़ापा नहीं आएगा, सदैव सुंदरता बनी रहेगी। यह चमत्कारी फल देकर गोरखनाथ वहां से चले गए। राजा ने फल लेकर सोचा कि उन्हें जवानी और सुंदरता की क्या आवश्यकता है। चूंकि राजा अपनी तीसरी पत्नी पर अत्यधिक मोहित थे, अत: उन्होंने सोचा कि यदि यह फल पिंगला खा लेगी तो वह सदैव सुंदर और जवान बनी रहेगी। यह सोचकर राजा ने पिंगला को वह फल दे दिया। रानी पिंगला भर्तृहरि पर नहीं बल्कि उसके राज्य के कोतवाल पर मोहित थी। यह बात राजा नहीं जानते थे। जब राजा ने वह चमत्कारी फल रानी को दिया तो रानी ने सोचा कि यह फल यदि कोतवाल खाएगा तो वह लंबे समय तक उसकी इच्छाओं की पूर्ति कर सक...

अपराजिता स्तोत्र मानव कष्टों के निवारणार्थ तथा इच्छित फल पाने का उचित साधन है इसका नित्य पाठ कर लाभ उठाए l

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वह स्तोत्र पाठ जिस पाठ को सिद्ध करने से साधक को कोई पराजित नहीं कर सकता। भगवान श्रीराम ने भी रावण पर विजय पाने के लिए युद्ध से पहले अपराजिता अनुष्ठान किया था। श्रीत्रैलोक्यविजया अपराजितास्तोत्रम् । ॐ नमोऽपराजितायै । ॐ अस्या वैष्णव्याः पराया अजिताया महाविद्यायाः वामदेव-बृहस्पति-मार्केण्डेया ऋषयः ।गायत्र्युष्णिगनुष्टुब्बृहती छन्दांसि । लक्ष्मीनृसिंहो देवता । ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं बीजम् । हुं शक्तिः । सकलकामनासिद्ध्यर्थं अपराजितविद्यामन्त्रपाठे विनियोगः । ॐ निलोत्पलदलश्यामां भुजङ्गाभरणान्विताम् । शुद्धस्फटिकसङ्काशां चन्द्रकोटिनिभाननाम् ॥ १॥ शङ्खचक्रधरां देवी वैष्ण्वीमपराजिताम् बालेन्दुशेखरां देवीं वरदाभयदायिनीम् ॥ २॥ नमस्कृत्य पपाठैनां मार्कण्डेयो महातपाः ॥ ३॥ मार्ककण्डेय उवाच – शृणुष्वं मुनयः सर्वे सर्वकामार्थसिद्धिदाम् । असिद्धसाधनीं देवीं वैष्णवीमपराजिताम् ॥ ४॥ ॐ नमो नारायणाय, नमो भगवते वासुदेवाय, नमोऽस्त्वनन्ताय सहस्रशीर्षायणे, क्षीरोदार्णवशायिने, शेषभोगपर्य्यङ्काय, गरुडवाहनाय, अमोघाय अजाय अजिताय पीतवाससे, ॐ वासुदेव सङ्कर्षण प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, हयग्रिव, मत्स्य कूर्म्म, वार...

नाथ सम्प्रदाय से जुड़ी कथाओं में रेवणनाथ के जन्म और

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रेवणनाथ : महाराष्ट्र के सोलापुर जिले में करमाला तहसील के वीट गांव में इनकी समाधि है। रेवणनाथ के पिता थे ब्रह्मदेव। रेवणनाथ के जन्म की कथा भी अजीब है। वैसे सभी नाथों के जन्म की रेवणनाथ के जन्म की कथा भी अजीब है। वैसे सभी नाथों के जन्म की कथाएं आश्चर्य में डालने वाली ही हैं जिन पर आसानी से विश्वास करना मुश्किल होगा, लेकिन यह सच है ।

रानी द्वारा आत्मदाह की घटना ने भर्तृहरि को वैराग्य

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भर्तृहरि नाथ : भर्तृहरि राजा विक्रमादित्य के बड़े भाई थे। राजा गंधर्वसेन ने राजपाट भर्तृहरि को सौंप दिया। अपनी रानी, जिससे भर्तृहरि अपार प्रेम करते थे, से मिले धोखे और फिर पश्चाताप के रूप में रानी द्वारा आत्मदाह की घटना ने भर्तृहरि को वैराग्य जीवन की राह दिखा दी। वे वैरागी हो गए। इसके बाद विक्रमादित्य को राज्यभार संभालना पड़ा। एक सिद्ध योगी ने राजा भर्तृहरि को एक फल दिया और कहा कि इसको खाने के बाद आप चिरकाल तक युवा बने रहेंगे। भर्तृहरि ने फल ले लिया पर उनकी आसक्ति अपनी छोटी रानी में थी। वह फल उन्होंने हिदायत के साथ उन्होंने अपनी छोटी रानी को दे दिया। छोटी रानी को एक युवक से प्रेम था, तो उसने वह फल युवक को दे दिया। युवक को एक वैश्या से प्रेम था, तो उसन उसे वह फल दे दिया वैश्या को लगा कि वह तो पतिता है; फल के लिए सुपात्र तो राजा भर्तृहरी हैं जो दीर्घायु होंगे तो राज्य का कल्याण होगा। ऐसा सोचकर उस वैश्या ने वह फल वेश बदल कर राजा को दिया। फल को देख राजा के मन से आसक्ति जाती रही और उन्होंने नाथ संप्रदाय के गुरु गोरक्षनाथ का शिष्यत्व ले लिया। मध्यप्रदेश के उज्जैन में आज भी भर्तृह...

कनीफनाथ महाराज हिमालय में हथिनी के कान से

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कृष्णपाद : मत्स्येन्द्र नाथ के समान ही जालंधर नाथ और कृष्णपाद की महिमा मानी गई। इनके गुरु जालंदरनाथ थे। जालंधरनाथ मत्स्येंद्र नाथ के गुरु भाई माने जाते हैं। कृष्णपाद को कनीफ नाथ भी कहा जाता है। कृष्णपाद जालंधर नाथ के शिष्य थे और इनका नाम कण्हपा, कान्हूपा, कानपा आदि प्रसिद्ध है। कोई तो उन्हें कर्णाटक का मानता है और कोई उड़ीसा का। जालंधर और कृष्णपाद कापालिक मत के प्रवर्तक थे। कापालिकों की साधना स्त्रियों के योग से होती है। भारतवर्ष में सर्वत्र ही सिद्धों का उदय 6ठी से 11वीं सदी तक रहा। महाराष्ट्र की सह्याद्री पर्वत श्रृंखला में गर्भगिरि पर्वत से बहने वाली पौनागि‍रि नदी के पास ऊंचे किले पर मढ़ी नामक गांव बसा हुआ है और यहीं है इस महान संत की समाधि। इस किले पर श्री कनीफ नाथ महाराज ने 1710 में फाल्गुन मास की वैद्य पंचमी पर समाधि ली थी, जहां लाखों श्रद्धालुओं की आस्था बसी हुई है। कहा जाता है कि कनीफनाथ महाराज हिमालय में हथिनी के कान से प्रकट हुए थे। माना जाता है कि ब्रह्मदेव एक दिन सरस्वती के प्रति आकर्षित हुए तो उनका वीर्य नीचे गिर गया, जो हवा में घूमता हुआ हिमाचल प्रदेश में विचर...

हस्तिनापुर में ब्रिहद्रव नाम के राजा का सोमयज्ञ करना

जालंधर (जालिंदरनाथ) नाथ :  इनके गुरु दत्तात्रेय थे। एक समय की बात है हस्तिनापुर में ब्रिहद्रव नाम के राजा सोमयज्ञ कर रहे थे। अंतरिक्षनारायण ने यज्ञ के भीतर प्रवेश किया। यज्ञ की समाप्ति के बाद एक तेजस्वी बालक की प्राप्ति हुई। यही बालक जालंधर कहलाया। राजस्थान के जालौर के पास आथूणी दिस में उसका तपस्या स्थल है। यहां पर मारवाड़ के महाराजा मानसिंह ने एक मंदिर बनवाया है। जोधपुर में महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश संग्रहालय में अनेक हस्तलिखित ग्रंथ हैं जिसमें जालंधर का जीवन और उनके कनकाचल में पधारने का जिक्र है। चचंद्रकूप सूरजकुंड कपाली नामक यह स्थान प्रसिद्ध है। जालंधर के तीन तपस्या स्थल हैं- गिरनार पर्वत, कनकाचल और रक्ताचल। उनके होने संबंधी दस्तावेजों के मुताबिक वे विक्रम संवत 1451 में राजस्थान में पधारे थे।

एक दिन गुरु गोरखनाथ अपने गुरु मछिन्दर नाथ के साथ तालाब के किनारे एक एकांत जगह प्रवास कर रहे थे

एक दिन गुरु गोरखनाथ अपने गुरु मछिन्दर नाथ के साथ तालाब के किनारे एक एकांत जगह प्रवास कर रहे थे, जहां पास ही में एक गांव था। मछिंदरनाथ ने कहा कि मैं तनिक भिक्षा लेकर आता हूं तब तक तुम संजीवनी विद्या के बारे में तुमने आज तक जो सुना है ना उसकी सिद्धि का मंत्र जपो। यह एकांत में ही सिद्ध होती है। संजीवनी विद्या को सिद्ध करने को चार बातें चाहिए श्रद्धा, तत्परता, ब्रह्मचर्य और संयम। ये चारों बातें तुम में हैं। खाली एकांत में रहो, ध्यान से जप करो और संजीवनी सिद्ध कर लो। ऐसा कहकर मछिंदरनाथ तो चले गए और गोरखनाथ जप करने लगे। वे जप और ध्यान कर ही रहे थे वहीं तालाब के किनारे बच्चे खेलने आ गए। तालाब की गीली-गीली मिट्टी को लेकर वे बैलगाड़ी बनाने लगे। बैलगाड़ी बनाने तक वो सफल हो गए, लेकिन बैलगाड़ी चलाने वाला मनुष्य का पुतला वे नहीं बना पा रहे थे। किसी लड़के ने सोचा कि ये जो आंख बंद किए बाबा हैं इन्हीं से कहें- बाबा-बाबा हमको गाड़ी वाला बनाके दीजिए। गुरु गोरखनाथ ने आंखें खोलीं और कहा कि अभी हमारा ध्यान भंग न करो फिर कभी देखेंगे। लेकिन वे बच्चे नहीं माने और फिर कहने लगे।  बच्चों के आग्रह के चलते गोर...

पितृ दोष अगर ऐसा करने से कभी रह जाए तो कहना बस एक बार पढ़ लो समाधान खुद हो जाएगा इसलिए

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पितृ शांति के लिए आज हममे से बहुत से लोग रीति रिवाज वैदिक कर्म पूजा पाठ विधान और सत्कर्मों को करने में व्यस्त है लेकिन फिर भी कहीं ना कहीं चूक हो ही रहीं है क्योंकि आपको इस सबसे भी पितृ शांति का अभिप्राय सिद्ध नहीं हो रहा और आप के मन में ये कुंठा विद्यमान है कि नहीं अभी भी हमारे पितृ गणों को अन्न जल शांति नहीं पहुंची l कभी आपने सोंचा ऐसा क्यों? मैं आपको एक ऐसी बात कहने जा रहा हूँ जो वैदिक कर्मों से नहीं गायत्री मंत्र यज्ञ आदि से परे सिर्फ वैचारिक अनुभूति है और वो यह है कि जैसे आप अपने बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित रहते है ऐसे ही सभी के पितृगण अपने कुल का उधार और समाजिक मान प्रतिष्ठा चाहते है ताकि उनका नाम रोशन हो वो कभी नहीं चाहते कि उनके कुल में झूट फरेब अपराध नशा चोरी नफरत हीन भावना अहंकार और कुल को नष्ट करने वाले कर्म हो इसलिए l उनकी सोच आपके परिवारो से जुड़ी है और वो आपको और एक दूसरे को ऐसा करने से रोकते है क्योंकि उन्हें अपने कुल से ये चलन खत्म कराना है इसलिए परेशान करते है और आपका ध्यान इस और आए इसलिए आपको महसूस कराने की कोशिश करते है क्योंकि उन्हें पसंद नहीं कि कुल...

जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय l ऐसे ही और अधिक बहुत ही सुन्दर कबीर दास जी के दोहे अर्थ सहित

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जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय कबीर मन की पवित्रता पर ज्यादा जोर देते हैं। वह कहते हैं कि यदि आपका मन साफ और शीतल है तो इस संसार में कोई भी मनुष्य आपका दुश्मन नहीं हो सकता है, लेकिन अगर आप अपने अहंकार को नहीं छोड़ेंगे, तो आपके बहुत से लोग दुश्मन बन जाएंगे। ऐसे में यदि आप समाज में खुश रहना चाहते हैं, तो किसी को भी अपना दुश्मन न बनाएं। सभी से प्रेमपूर्वक व्यवहार कीजिए। स भी आपके दोस्त बनकर रहेंगे। गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय । बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय॥ भावार्थ: कबीर दास जी इस दोहे में कहते हैं कि अगर हमारे सामने गुरु और भगवान दोनों एक साथ खड़े हों तो आप किसके चरण स्पर्श करेंगे? गुरु ने अपने ज्ञान से ही हमें भगवान से मिलने का रास्ता बताया है इसलिए गुरु की महिमा भगवान से भी ऊपर है और हमें गुरु के चरण स्पर्श करने चाहिए। यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान । शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान । भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि यह जो शरीर है वो विष जहर से भरा हुआ है और गुरु अमृत की खान हैं। अगर अपना शीशसर देने के बदले...